गोवर्धन पूजा 2025: प्रकृति और भक्ति का अद्भुत पर्व | Govardhan Puja: The Amazing Festival of Nature and Devotion

Govardhan Puja

दिवाली के अगले दिन मनाया जाने वाला गोवर्धन पूजा का त्योहार भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म में एक विशेष स्थान रखता है। यह पर्व भगवान कृष्ण की लीलाओं, प्रकृति के प्रति कृतज्ञता और अटूट भक्ति का प्रतीक है।

जब दीपावली अपने चमकदार प्रकाश से हर घर को रोशन कर चुकी होती है, उसके ठीक बाद आने वाली Govardhan Puja हमें एक गहरे आध्यात्मिक संदेश और प्रकृति के साथ हमारे संबंध की याद दिलाती है। यह सिर्फ एक अनुष्ठान नहीं, बल्कि पर्यावरण के प्रति हमारे सम्मान और भगवान कृष्ण के प्रति हमारी अटूट आस्था का जीवंत प्रदर्शन है।

Govardhan Puja


“यह पर्व हमें यह याद दिलाता है कि हमें अपने जीवन में अहंकार को त्यागकर, अपने आसपास के पर्यावरण और जीवों का सम्मान करना चाहिए। दीपावली के बाद आने वाला यह त्योहार हमें प्रकाश के साथ-साथ प्रकृति के गहरे और स्थायी महत्व को समझने का अवसर देता है। “गोवर्धन महाराज की जय!”

गोवर्धन पूजा 2025 की तिथि (Date of Govardhan Puja in 2025)

गोवर्धन पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाई जाती है। यह आमतौर पर दीपावली के ठीक अगले दिन पड़ती है। वर्ष 2025 में, गोवर्धन पूजा गुरुवार, 23 अक्टूबर 2025 को मनाई जाएगी।

गोवर्धन पूजा क्यों मनाई जाती है? (Why is Govardhan Puja Celebrated?)

गोवर्धन पूजा के पीछे भगवान कृष्ण की एक बहुत ही प्रसिद्ध और प्रेरणादायक कथा है, जो हमें अहंकार त्यागने और प्रकृति का सम्मान करने का संदेश देती है।

इंद्रदेव का मान मर्दन और गिरिराज गोवर्धन की पूजा:

पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण जब बाल गोपाल थे, तब ब्रजवासी इंद्रदेव को प्रसन्न करने के लिए वर्षा और अच्छी फसल के लिए उनकी पूजा करते थे। एक बार, बाल कृष्ण ने देखा कि ब्रजवासी इंद्र पूजा की बड़ी तैयारी कर रहे हैं। कृष्ण ने अपने पिता नंद बाबा से पूछा कि वे किसकी पूजा कर रहे हैं और क्यों? नंद बाबा ने बताया कि वे वर्षा के देवता इंद्र की पूजा कर रहे हैं, ताकि उनकी फसल अच्छी हो और उनके पशुओं को पर्याप्त चारा मिले।

इस पर, कृष्ण ने ब्रजवासियों को समझाया कि इंद्रदेव की पूजा करने के बजाय उन्हें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि गोवर्धन पर्वत ही उनके पशुओं को चारा, वनस्पति और आश्रय देता है, और मेघों को धारण करता है। उन्होंने यह भी कहा कि प्रकृति ही हमारी वास्तविक पालक है। कृष्ण के समझाने पर, ब्रजवासियों ने उनकी बात मान ली और इंद्र की पूजा छोड़ कर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे।

यह देखकर इंद्रदेव अत्यंत क्रोधित हुए। उन्होंने ब्रजवासियों को दंडित करने के लिए प्रलयंकारी वर्षा शुरू कर दी, जिससे पूरे ब्रज में हाहाकार मच गया। ब्रजवासी भयभीत होकर कृष्ण की शरण में आए। तब बाल कृष्ण ने अपनी अलौकिक शक्ति का प्रदर्शन करते हुए गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली (कनिष्ठा उंगली) पर उठा लिया और सभी ब्रजवासियों तथा उनके पशुओं को उसके नीचे आश्रय दिया।

इंद्रदेव ने लगातार सात दिनों तक वर्षा की, लेकिन कृष्ण की शक्ति के सामने वे विफल रहे। अंततः, इंद्रदेव को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने कृष्ण से क्षमा मांगी। इस प्रकार, कृष्ण ने इंद्रदेव के अभिमान को तोड़ा और ब्रजवासियों को यह सिखाया कि हमें प्रकृति का सम्मान करना चाहिए, क्योंकि वही हमारा जीवन-आधार है। इस घटना के बाद से ही गोवर्धन पर्वत और भगवान कृष्ण की पूजा का प्रचलन शुरू हुआ।

गोवर्धन पूजा से जुड़े रोचक तथ्य (Interesting Facts Related to Govardhan Puja)

Govardhan Puja
  1. अन्नकूट का भोग: गोवर्धन पूजा के दिन छप्पन भोग (या 56 प्रकार के पकवान) बनाए जाते हैं, जिसे ‘अन्नकूट’ कहा जाता है। इसे गोवर्धन पर्वत के प्रतीक के रूप में बनाया जाता है और भगवान कृष्ण को अर्पित किया जाता है।
  2. पर्यावरण संरक्षण का संदेश: यह पर्व हमें पर्यावरण के प्रति संवेदनशील होने और प्रकृति का सम्मान करने का महत्वपूर्ण संदेश देता है।
  3. गाय और बैल की पूजा: इस दिन गायों और बैलों की भी पूजा की जाती है, क्योंकि वे कृषि और दूध उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्हें स्नान कराकर, सजाकर और भोजन कराया जाता है।
  4. बलि प्रतिपदा: गोवर्धन पूजा को ‘बलि प्रतिपदा’ के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन राजा बलि के पाताल लोक जाने की कथा भी जुड़ी है, जहाँ भगवान विष्णु ने वामन अवतार में उन्हें तीनों लोकों का दान मांगकर पाताल भेजा था।
  5. नवीन वर्ष का आरंभ: गुजरात में गोवर्धन पूजा के दिन से ही विक्रम संवत के अनुसार नए वर्ष का आरंभ होता है, जिसे ‘बेस्तु वरस’ के नाम से मनाया जाता है।

गोवर्धन पूजा कैसे की जाती है? (How is Govardhan Puja Done?)

गोवर्धन पूजा विधिपूर्वक और श्रद्धाभाव से की जाती है। इसकी मुख्य विधियाँ इस प्रकार हैं:

  1. सुबह की तैयारी:
    • सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
    • घर के आंगन में या पूजा स्थल पर गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत का प्रतिरूप (छोटा पहाड़) बनाया जाता है। इसे अक्सर लेटे हुए पुरुष के आकार में भी बनाया जाता है, जिसके बीच में नाभि जैसा स्थान होता है।
    • इस पर्वत को फूलों, पत्तों, रंगोली और दीपक से सजाया जाता है।
    • पर्वत के चारों ओर गोबर से ही ग्वाले, गाय-बछड़े, और भगवान कृष्ण की आकृतियाँ बनाई जाती हैं।
  2. अन्नकूट की तैयारी:
    • गोवर्धन पूजा का सबसे महत्वपूर्ण भाग अन्नकूट भोग है। इस दिन घर में 56 प्रकार के व्यंजन (या जितने संभव हो) तैयार किए जाते हैं। इसमें विभिन्न प्रकार की सब्जियां, दालें, चावल, पूड़ी, पकवान, मिठाईयाँ आदि शामिल होती हैं।
    • इन सभी पकवानों को गोवर्धन पर्वत के सामने परोसा जाता है।
  3. पूजा विधि:
    • सबसे पहले भगवान कृष्ण की मूर्ति स्थापित करें और उनकी पूजा करें। उन्हें स्नान कराएं, वस्त्र पहनाएं, चंदन, रोली, अक्षत, फूल और भोग अर्पित करें।
    • इसके बाद, गोबर से बनाए गए गोवर्धन पर्वत की पूजा करें। उस पर दही, दूध, गंगाजल, धूप, दीप, फूल और फल अर्पित करें।
    • गोवर्धन पर्वत की नाभि में दही, दूध, गंगाजल, शहद आदि डालकर पूजा करें।
    • गाय और बैलों की भी पूजा करें। उन्हें तिलक लगाकर, माला पहनाकर और हरी घास या चारा खिलाएं।
    • पूजा के दौरान गोवर्धन कथा का पाठ करें और आरती गाएं।
    • परिवार के सभी सदस्य मिलकर गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं। परिक्रमा करते समय ‘गोवर्धन महाराज की जय!’ का जाप किया जाता है।
  4. भोग वितरण:
    • पूजा और परिक्रमा के बाद, अन्नकूट का भोग प्रसाद के रूप में सभी भक्तजनों और परिवार के सदस्यों को वितरित किया जाता है।
    • कुछ लोग इस दिन ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन भी कराते हैं।

गोवर्धन पूजा केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं, बल्कि यह हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाने, अपने पशुधन का सम्मान करने और विनम्रता का पाठ पढ़ाने वाला एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह भगवान कृष्ण के ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’ के सिद्धांत को भी दर्शाता है, जहाँ उन्होंने ब्रजवासियों को समझाया कि उनका कर्म (पशुओं का पालन-पोषण) ही उनकी पूजा है, और फल (वर्षा) किसी देवता का आशीर्वाद नहीं, बल्कि प्रकृति का स्वाभाविक चक्र है।

यह पर्व हमें यह याद दिलाता है कि हमें अपने जीवन में अहंकार को त्यागकर, अपने आसपास के पर्यावरण और जीवों का सम्मान करना चाहिए। दीपावली के बाद आने वाला यह त्योहार हमें प्रकाश के साथ-साथ प्रकृति के गहरे और स्थायी महत्व को समझने का अवसर देता है। “गोवर्धन महाराज की जय!”

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